केंद्र का राजकोषीय घाटा या केंद्र सरकार की राजस्व प्राप्तियों और व्यय के बीच का अंतर, जनवरी तक लगभग 11 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर फरवरी के अंत में 15 लाख करोड़ रुपये हो गया है। यह घाटे के 29 दिनों के भीतर 17.3 लाख करोड़ रुपये के संशोधित लक्ष्य के 63.6 फीसदी से बढ़कर 86.5 फीसदी तक पहुंच जाने को दर्शाता है। यह पिछले साल के मुकाबले काफी ज्यादा उछाल वाला सफर है – 2022-23 में घाटे का लक्ष्य 17.55 लाख करोड़ रुपये था, जनवरी तक यह लक्ष्य का 67.6 फीसदी था और फरवरी में 82.6 फीसदी तक उस समय पहुंच गया जब घाटे में 2.3 लाख करोड़ रुपये का इजाफा हुआ। आखिरकार, पिछले साल का राजकोषीय अंतर 17.33 लाख करोड़ रुपये था जो इस साल के लक्ष्य के लगभग बराबर ही था। कुछ कारक आंशिक रूप से फरवरी महीने में घाटे में हुई बढ़ोतरी की व्याख्या करते हैं। पहला, केंद्र ने राज्यों को उनके कर हस्तांतरण हिस्से की दो किस्तों के जरिए लगभग 2.15 लाख करोड़ रुपये हस्तांतरित किए, जबकि पिछले साल यह हस्तांतरण सिर्फ 1.4 लाख करोड़ रुपये का ही था। दूसरा, पूंजीगत व्यय जो इस जनवरी में गिरकर 47,600 करोड़ रुपये हो गया था, फरवरी 2023 के पूंजीगत व्यय परिव्यय से चार गुना ज्यादा 84,400 करोड़ रुपये तक बढ़ गया था। सरकार के 10 लाख करोड़ रुपये के लक्ष्य को पूरा करने के लिए मार्च में पूंजीगत व्यय को 1.4 लाख करोड़ रुपये तक बढ़ाना होगा, लेकिन महीने के बीच में लोकसभा चुनावों के लिए आदर्श आचार संहिता लागू होने से यह आंकड़ा थोड़ा कम रह सकता है।
सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के अनुपात के रूप में, पिछले साल राजकोषीय घाटा 6.4 फीसदी था और इस साल का मूल लक्ष्य 5.9 फीसदी था जिसे वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने पिछले महीने अंतरिम बजट में संशोधित करके 5.8 फीसदी कर दिया। सरकार ने 2024-25 के लिए 5.1 फीसदी लक्ष्य के साथ, 2025-26 तक इस घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के 4.5 फीसदी तक सीमित करने की प्रतिबद्धता जताई है। अगली सरकार की प्राथमिकताओं और वर्तमान एवं अगली तिमाही में अर्थव्यवस्था के हालात के आधार पर, आम चुनाव के बाद इस साल के पूर्ण बजट में इस सुव्यवस्थित राह में थोड़ी फेरबदल की जरूरत हो सकती है। कोविड-19 महामारी के बाद से सार्वजनिक पूंजीगत व्यय के जरिए विकास को बढ़ावा देने की कोशिश करते हुए, केंद्र यह उम्मीद कर रहा है कि निजी निवेश चालक की भूमिका में आ जाएगा, लेकिन उच्च मुद्रास्फीति, खराब मानसून और उपभोग की असमान मांग ने उन उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। राजस्व व्यय के मोर्चे पर, सरकार के पास मार्च महीने में अभी भी छह लाख करोड़ रुपये खर्च करने का मौका उपलब्ध है। केवल तीन महत्वपूर्ण जन-केंद्रित मंत्रालयों – कृषि, ग्रामीण विकास और उपभोक्ता कार्य – के पास फरवरी में उनके नियोजित खर्चों को संशोधित किए जाने के बावजूद इस वित्तीय वर्ष के आखिरी महीने के लिए 1.03 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की क्षमता बची हुई है। यह काफी प्रशंसनीय है कि कुछ मंत्रालय अपने लक्ष्यों से चूक जायेंगे और पूरे साल के घाटे के आंकड़ों के लिहाज से सकारात्मक रूप से हैरतअंगेज नतीजे देंगे। वृहद स्तर पर बेहतर आर्थिक सेहत के लिए लगाम कसना अच्छा है, लेकिन लगातार खर्च करने वाले लक्ष्यों को चूकने से इच्छित नतीजों से समझौता होता है और यह संकेत मिलता है कि आने वाले वर्षों में बेहतर परिव्यय की योजना बनाने और कम उधार लेने की गुंजाइश है।
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